Thursday, February 3, 2011

ZINDAGI KA DARD !

ज़िन्दगी ,तुम भी कितनी अजीब हो न जाने किन किन हाल में नज़र आती हो ,
एक मुद्दत से तुझे याद किया जब तुम मिली तो फटे हाल नज़र आयी हो !
मेने ऐसा तो नहीं सोचा था: कि तुम टूट जाओ गी  पर आज मिली तो टूटी नज़र आयी हो
वक़्त मरहम हे सभी ऐसा कहते हेँ  पर  तेरे ज़ख्मों में वोह बात नज़र नहीं आई  हे 
भूल जा मत याद कर वोह हादसे कभी तूने किसी के साथ खुशी बीताई हे !
ज़ुल्म को सहना छोड़ दे जालिम पर कर वार !
ज़ालिम को उसके हर वार कि तू दिला याद !
काश!वक़्त मरहम बनता तेरे नासूर का
पर तूने भी तो ज़ख्म को हरा रखा हे

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