Wednesday, December 22, 2010

TUM MERE NAHI

सोचता हूँ के तुम मेरे नहीं  |
फिर सोचता हूँ के तुम ही  मेरे हो |
ये सोच सोच कर गुज़र रही हे जिंदगी 
काश में जान  पाता कि कोन किसका हे ?
छीन ली उसने मेरे समझ ने कि समझ
कोई आकर मुझे बताए कि कोन किसका हे ?
या रब मुझसे छीन  ले मेरी याददाश्त !
कि में भूल जाऊं कि  में  किसका हूँ  !
                            आबिद अब्बासी कोटा राजस्थान

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