सोचता हूँ के तुम मेरे नहीं |
फिर सोचता हूँ के तुम ही मेरे हो |
ये सोच सोच कर गुज़र रही हे जिंदगी
काश में जान पाता कि कोन किसका हे ?
छीन ली उसने मेरे समझ ने कि समझ
कोई आकर मुझे बताए कि कोन किसका हे ?
या रब मुझसे छीन ले मेरी याददाश्त !
कि में भूल जाऊं कि में किसका हूँ !
आबिद अब्बासी कोटा राजस्थान
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